नई दिल्ली. कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते जहां पूरी दुनिया कैद है वहीं अब महानगरों का ग्लैमर भी अब युवाओं में कम होने लगा है। युवा अब अपने मूल व्यवसाय खेती की ओर लौटने लगे हैं। क्या क्या इंजीनियर क्या बड़ी कंपनियों में कार्य करने वाले युवा ये लोग अब अपने गांव में ही रहकर खेती को व्यवसाय बना रहे हैं।
प्रयागराज के रहने वाले प्रकाश चंद्र दिल्ली में एक निजी बैंक के फ़ाइनेंस विभाग आला पद पर काम करते थे। देशभर में लागू जनता कर्फ़्यू के दौरान कुछ समय पहले ही वह अपने गांव आ गए थे। इस बीच लॉकडाउन के चलते कई कंपनियां जारी कॉस्ट कटिंग कर ही है इस परेशानी से उन्हें परेशान कर दिया है। देश भर में लॉकडाउन के हालात के मद्देनजर प्रकाश चंद्र ने फैसला कर लिया है कि वह अपने गांव में ही रहेंगे।
"प्रकाश चंद्र की नौकरी पर तो कोई खतरा नहीं है लेकिन उनके कई परिचितों की नौकरी कुछ महीनों में चली गई। लिहाजा वे परेशान हैं। इस बीच उन्हें गांव में रहकर ही कुछ करने का खयाल आया। उनके पास थोड़ी-बहुत ज़मीन भी है सात ही गांव में रहने के लिए घर। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान ही अपना इस्तीफा भेज दिया। और सोच लिया कि गांव में ही रहकर उन्हें खेती करनी है." प्रकाश चंद्र को दिल्ली से लौटे दो महीने बीच चुके हैं। यू-ट्यूब और अन्य श्रोतों से वे कुछ अलग और आधुनिक खेती की दिशा में योजना बना रहे हैं।
इधर प्रयागराज के ही रहने वाले एक अन्य युवा संजय त्रिपाठी ने तो तरबूज, खरबूजा, खीरा और ककड़ी की खेती की शुरूवात भी कर दी है। संजय पेशे से इंजीनियर हैं और नोएडा की एक मोबाईल कंपनी में 6 साल से काम कर रहे थे। संजय के मन में यह बात थी कि 10 से 12 घंटे की मेहनत के बाद यदि वह 35 से 40 हजार कमाते थे तो इससे बेहतर है कि गांव में रहकर ही खेती व अन्य रोजगार करें। गांव का सूकून भी होगा और बेहतर जीवन-यापन। लॉकडाउन के बाद उन्हें अपने मन में छिपी इच्छा को बाहर लाने का मौका दे दिया।
महानगरों की चकाचौंध से परे एक और युवा से हम मिलाते हैं। ये हैं मऊ ज़िले के रहने वाले कृष्ण कुमार जो पुणे में सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। फिलहाल इन्होंने अपनी नौकरी अभी छोड़ी नहीं है, लेकिन लॉकडाउन ख़त्म होते ही नौकरी छोड़कर गांव जाने की मन बना चुके हैं। वे दो महीने से घर से ही काम कर रहे हैं। तकरीबन एक साल से वो इसी योजना को तय करने में लगे हैं कि गांव वापस चले जाएं और वहां कुछ काम करें।
वहीं मनीष कुमार राय भी एक ऐसे ही युवा हैं। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में सोशल वर्क विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थे। साल 2013 में वो नौकरी छोड़कर गांव में ही केले की खेती करने लगे और बेहतर मुनाफा भी कमा रहे हैं। उन्हें देखकर कई लोग भी खेती के क्षेत्र में आ गए।
मनीष कुमार कई लोगों के साथ मिलकर क़रीब 6 सौ एकड़ ज़मीन पर केले की खेती करते हैं। उनके साथ दर्जनों किसान जुड़े हुए हैं और सभी पढ़े लिखे भी। खेती में मेहनत और तकनीक के सात जो मुनाफा है वह और कहीं नहीं। एक एकड़ केले की खेती में क़रीब डेढ़ लाख रुपये की लागत आती है और आमदनी क़रीब तीन-चार लाख रुपये होती है।