दलहनी-तिलहनी फसलों में कीट प्रकोप से बचाव के लिये सम-सामयिक सलाह

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धमतरी। जिले में रबी के बदले दलहन, तिलहन, गेहूं एवं ग्रीष्मकालीन मक्का, मूंग, उड़द की खेती को कृषि विभाग द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। उप संचालक कृषि ने बताया कि खरीफ सीजन के धान फसल के खेत में अवशेष नरई एवं तनाछेदक के अण्डे तथा मिट्टी में ब्लास्ट रोग के बीजाणु उपस्थित रहते हैं, जो रबी सीजन में धान की फसल को पुनः खेती करने पर नई फसल को उपहार में मिलते हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये किसानों को धान फसल की जगह फसल चक्र अपनाकर दलहन-तिलहन, गेहूं, उड़द, मूंग इत्यादि फसलों की खेती करने के लिये प्रेरित किया जा रहा है।
मौसम के उतार-चढ़ाव के चलते फसलों में कीटव्याधि एवं बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है, जिसके कारण रसचूसक कीड़े, तनाछेदक, फलीभेदक एवं फफूंदजनित रोग उत्पन्न हो रहे हैं। इसके लिये किसानां को सतर्क होने की जरूरत है। जिले में दलहनी फसल मुख्य रूप से चना, मटर, मसूर, उड़द तथा तिवड़ा एवं तिलहनी फसल के रूप में अलसी, राई, सरसां की खेती की जा रही है। चना एवं मटर के प्रक्षेत्रों का अवलोकन करने पर फलभेदक एवं पत्ती खाने वाली इल्ली कीड़े का विशेष रूप से प्रकोप दिख रहा है। इसके लिये क्लोरेंट्रेनीलीप्रोल 0.5 ग्राम, प्रति लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करने की सलाह दी गई है। सरसों वर्गीय फसलों में मैनी की रोकथाम के लिये थायामिथोक्साम-40 की 1.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर उपचार किया जाये। इसके अलावा रसचूसक कीड़े की रोकथाम के लिये इमिडाक्लोप्रिड की 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर उपचार करने की सलाह दी गई है।

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