रायपुर। अभिनव नाट्य संस्था की तरफ से शनिवार को वृन्दावन हाल में कवि, लेखक, शिक्षक और रंगकर्मी डॉ. लक्ष्मीकांत के काव्य संग्रह अल्पविराम का विमोचन किया गया। साथ ही कैलाश शादाब द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक द प्रस्ताव का मंचन हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार गिरीश पंकज, सिंधी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के साहित्यकार और रंगकर्मी कैलाश शादाब उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, कवि चम्पेश्वर गोस्वामी ने किया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता गिरीश पंकज ने अल्पविराम की कविताओं को आधुनिक मन की चुप्पियों और प्रश्नों को छूती हुई आत्मदृष्टि कहा। उन्होंने कहा की लक्ष्मीकांत की लेखनी में तरुणाई की उमंग, सात्विक प्रेम, समर्पण, विरह, वेदना, ग्राम-समाज का दारुण यथार्थ, देश प्रेम, नवयुवकों का आह्वान, और कुछ नया करने का जज्बा जैसे अनेक समसामयिक विषय आडंबरहीन और सहजता से झलकते हैं। कविताएं केवल पढ़ी नहीं जाती, वे पाठक के भीतर गूंजती है मौन संवाद करती है।
वरिष्ठ लेखक, कवि और रंग-निर्देशक कैलाश शादाब ने कहा कि लक्ष्मीकांत की कविता भाषाओं की सीमाओं से परे जाकर संवेदना की भाषा बोलती है। उनको दृष्टि केवल सामाजिक नहीं, आत्मिक भी है, जो कवि को विशिष्ट बनाती है। लक्ष्मीकांत की लंबी कविताएं अपने समय और अपने भावों से लंबा संवाद करती प्रतीत होती है। वह अपने प्रयास में उस खुरचन तक पहुँचना चाहता है, जिसके नीचे दरअसल मानव स्वभाव की मूल संरचनाएं कहीं दब के रह गई है। वह हताशा के माहौल में हताशा को चुनौती देने में सक्षम है।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्यवाचन के अभिनव सत्र हुआ, जिसमें साहित्यप्रेमियों, रंगकर्मियों और विद्यार्थियों ने अल्पविराम की चुनिंदा कविताओं का पाठ किया। ये पाठ केवल वाचन नहीं थे, वे मंचीय प्रस्तुति की ऊष्मा से भरे थे – कहीं धीमे स्वर में कोई विरह की तान छेड़ता था , कहीं साहस की सधी हुई पुकार गूंजती थी। इस सत्र की विशेष बात यह रही कि कविताओं को सिर्फ आवाज नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की भंगिमा, भावभरे ठहराव, अंतरंगता का रंग भी मिला। दर्शकों ने इसे एक गहरे आत्मिक अनुभव के रूप में सराहा।
कार्यक्रम का अंतिम चरण था रंगमंचीय प्रस्तुति द प्रस्ताव, जो कैलाश शादाब की तरफ से लिखित एवं निर्देशित था। इस नाटक का मंचन साहित्य और रंगमंच के साझे प्रभाव को पूर्णता देता है। द प्रस्ताव एक मनोवैज्ञानिक व समसामयिक नाटक है जो संबंधों के भीतर छुपे संवादहीन तनाव, असहमति और आत्मस्वीकृति की पड़ताल करता है। नाटक की अभिनय-संवाद और संवादों की प्रामाणिकता ने दर्शकों को बांधे रखा।
कार्यक्रम में आये सभी अतिथियों और दर्शकों का आभार लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत ने स्वयं किया। उन्होंने कहा कि हम जीवन में जितना भी आगे बढ़ते चले जाएं पर कहीं न कहीं एक ठहराव जरुरी होता है। जैसे एक विराम, जो हमारे विचारों को कुछ पल के लिए स्थिर करता है। वैसे ही यह संग्रह मेरे जीवन के उन स्थिर क्षणों का एक सारांश है। यही कारण है कि इस संग्रह का नाम मैंने अल्पविराम रखा है। मुझे उम्मीद है कि यहां संकलित कविताएं पलभर के लिए रुकने और अपनी आंतरिक दुनिया से मिलकर बाहर आने का आह्वान करती हुई आपके ह्रदय के किसी कोने में अपना अस्तित्व तलाश ही लेंगी। इसी से मैं अपना प्रयास सार्थक समझूंगा। यह केवल एक पुस्तक का विमोचन नहीं मेरे भर के मौन का, मेरे समय की स्मृतियों का और संवेदना के लहराते समुद्र का सार्वजानिक स्वीकार है। आप सब इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर मुझे जो आत्मीयता दी इसके लिए मैं ऋणी हूं।