जल संचयन से जनभागीदारी ’’उन्हारी कार्यक्रम’’ की शुरूआत कुरूद से

किसान जागरूक होकर दलहन-तिलहन, नकदी फसलों की ओर कर रहे है रूख – अजय चंद्राकर

धमतरी। जिले में जल एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनेक कार्य किए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक है फसल चक्र परिवर्तन। इसके तहत ग्रीष्मकालीन फसलों में धान के बदले दलहन, तिलहन और कम पानी मांग वाली फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। जल संचयन से जनभागीदारी के तहत आज कृषि उपज मंडी कुरूद में ’’उन्हारी कार्यक्रम’’ आयोजित किया गया।

इस अवसर पर सांसद महासमुंद रूपकुमारी चौधरी ने कहा कि भूजल स्तर में लगातार हो रही गिरावट, चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि धमतरी जिला धान उत्पादन में अग्रणी है लेकिन आपको पता है कि धान उत्पादन में अधिक मात्रा में पानी की आवश्कता होती है। साथ ही लगातार एक ही फसल लेने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में कमी आती है। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की आय दोगुना करने की बात कही है, जिसे आज नई-नई तकनीकों के जरिए कम लागत पर अधिक आय कृषि के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का सपना था कि देश की नदियों को एक दूसरे से जोड़े ताकि पानी का समान वितरण हो सकें।

उन्होंने कहा कि आज की वर्तमान परिस्थिति को देखते आने वाले भयावह स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है, जिसके लिए पानी संचय करने की हम सभी को आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने मिलेट्स को बढ़ावा देने, धान के बदले अन्य फसलों को अपनाने की बात कही है, ताकि अच्छी आय अर्जित हो सके। कुरूद हमेशा नयी नहल को स्वीकारते हुए आगे बढ़ा है। मैं आशा करती हुं कि इस पहल में भी कुरूद अपनी सहभागिता निभाएगा। उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी कार्यक्रम के तहत धमतरी जिले को जोड़ने की बात कही।

विधायक कुरूद अजय चन्द्राकर ने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा जल जगार कार्यक्रम के माध्यम से जल संरक्षण हेतु एक अभिनव पहल की शुरूआत की है। आज पूरा विश्व जीवन की प्राथमिक आवश्यकता पानी की समस्या को लेकर चिंतित है, पानी के बिना जीवन की परिकल्पना करना मुश्किल है। कोई भी कार्य या बदलाव अथवा आयोजन बिना जनभागीदारी के पूरा नहीं हो सकता। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए अब समय आ गया है कि हम अपने स्वार्थ को छोड़कर जनहित और पानी संचय के लिए कार्य करें। हमने विभिन्न अधोसंरचना निर्मित कर बिजली, पानी एवं अन्य व्यवस्था ठीक कर ली है। अब परसतराई ग्राम की तर्ज पर सभी किसान जागरूक होकर दलहन-तिलहन, नकदी फसलों की ओर रूख कर रहे हैं। प्रशासन इन्हें खरीदने की उचित व्यवस्था करे। उन्होंने कहा कि किसानों की सुविधा के लिए ई-धान मंडी की शुरूआत की गई है। गर्व का विषय है कि पूरे छत्तीसगढ़ में धान की दर यहीं से तय होती है। जिला प्रशासन की इस पहल पर किसानों से अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने का आह्वान श्री चन्द्राकर ने किया।

कलेक्टर नम्रता गांधी ने इस अवसर पर लोगों को दलहन, तिलहन और नगदी फसलों को लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि किसानों को दलहन, तिलहन और अन्य बीज उपलब्ध कराने की व्यवस्था बीज निगम के माध्यम से करने की बात कही। उन्होंने कहा कि मार्कफेड के माध्यम से भारत सरकार के समर्थन मूल्य की तर्ज पर दलहन, तिलहन फसल खरीदने की प्रक्रिया शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इसका फायदा उठाएंगे। उन्होंने किसानां को दलहन, तिलहन और नकदी फसलों की बीमा की प्रक्रिया करने की भी बात कही।

कार्यक्रम के आरंभ में प्रभारी उप संचालक कृषि मनोज सागर बताया कि जिले में जल संरक्षण के लिए फसल चक्र परिवर्तन अपनाने हेतु सतत प्रयास किये जा रहे है, जिसका असर अब ग्रामीण अंचल के किसानों में दिखायी देने लगा है, जो स्वप्रेरित होकर दलहन-तिलहन फसलों के लिए बीज निगम मे अपना पंजीयन करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिले के लगभग 200 किसान ने पंजीयन हेतु अपना आवेदन प्रस्तुत किया है, जिसका रकबा लगभग 350 एकड़ के करीब है। बीते वर्षो में जहां दलहन तिलहन का रकबा 14 हजार हेक्टेयर था, जो अब बढ़कर 25 हजार हेक्टेयर हो गया है। जिले के परसतराई गांव के किसानों को देखकर अब अन्य गांवों के किसान फसल च्रक परितर्वन को अपनाने आगे आ रहे है। उन्होंने बताया कि जिले के ऐसे किसान जो फसल चक्र परितर्वन करना चाहते है, वे बीज निगम में अपना पंजीयन करवा सकते है। इसके लिए आवश्यक दस्तावेजो मे ंबी-1, खसरा, आधार कार्ड और बैंक पासबुक छायाप्रति की आवश्यकता होगी। जिला प्रशासन और ग्रामीणों की पहल पर किसानों को प्रशिक्षण इत्यादि देकर इस दिशा में जोड़ा जा रहा है, जिसका परिणाम अब भविष्य में नजर आयेगा।

कार्यक्रम को रविकर साहेब, कृषि कर्मण्य पुरस्कार से सम्मानित प्रगतिशील किसान भोलाराम साहू सहित अन्य प्रगतिशील किसानों ने संबोधित कर दलहन, तिलहन और नगदी फसलों से होने वाले फायदों को साझा किया और रासायनिक कीटनाशक के दुष्परिणामों के बारे में बताते हुए जैविक पद्धति से खेती करने की बात कही। इसके साथ ही दलहन, तिलहन, सब्जी की खेती के अलावा मिलेट्स उत्पादन पर भी जोर दिया। उन्होंने राजस्थान के कृषि वैज्ञानिक श्री सुभाष पालेकर की खेती की विधि का प्रशिक्षण जिले के किसानों को देने की बात कही।

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