कुरुद में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोला पर्व

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कुरुद @ मुकेश कश्यप। नगर सहित अंचल में गुरुवार को धूमधाम के साथ छत्तीसगढ का पारम्परिक पर्व पोला मनाया गया। इस अवसर पर घरों में नांदिया-बैला व मिट्टी के बर्तनों सहित पशुधनो की पूजा- अर्चना कर उन्हें चीला रोटी का भोग चढ़ाया गया। इस बीच रिमझिम बारिश की फुहारों के बीच छोटे-छोटे बच्चों ने नांदिया बैल खूब दौड़ाए।चारों तरफ हर्षोल्लास का मनमोहक वातावरण रहा।

विदित है कि प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को पोला पर्व मनाया जाता है जो कि खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य (निंदाई गुड़ाई) पूरा हो जाने की खुशी में मनाते हैं। फसलों के बढ़ने की खुशी में किसानों द्वारा बैलों की पूजन कर कृतज्ञता दर्शाने के लिए भी यह पर्व मनाया जाता है।छत्तीसगढ़ राज्य देश में एक मात्र राज्य हैं जो पूर्णत: कृषि प्रधान राज्य है। धान की खेती यहां की प्रमुख फसल है। यहीं कारण है कि प्रदेशवासी खेती किसानी का काम शुरू करने से पहले हल की पूजा करते हैं, जिसके बाद ही अपने कृषि काम में जुट जाते हैं। वहीं बैलों की पूजा भी पूरे विधि विधान से करते हैं। जिसमें राज्य की अलग संस्कृति की झलक दिखाई देती है।इसी पर्व को ही छत्तीसगढ़ में पोरा पर्व भी कहते हैं।इस दिन जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं।

कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है।इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की बच्चों द्वारा खेला जाता है। मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हैं। बैल के पैरों में चक्के लगाकर सुसज्जित कर उस के द्वारा खेती के कार्य समझाने का प्रयास किया जाता है।छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई जैसे कई छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को सबसे पहले बैलों की पूजा कर भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर के सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

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