रायपुर। टसर सिल्क, ये नाम तो आपने सुना ही होगा। टसर रेशम को जंगली रेशम भी कहा जाता है। टसर रेशम से बने कपड़े पहनने के शौकीनों की कमी नहीं हैं। सिल्क साड़ियां का बाजार आज भी गुलजार है। खास मौकों पर सिल्क कपड़ों का अपना अलग महत्व है। युवा से लेकर बुजुर्ग महिलाओं की पसंद में सिल्क साड़ियां पहले नंबर पर है। टसर सिल्क की समृद्ध बनावट और चटक गहरा रंग है, जो इसकी लोकप्रियता का कारण है।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ के विभिन्न रीपा केंद्रों में रेशम धगाकरण का कार्य स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। महिलाएं इससे अपना जीवन बेहतर बना रहे हैं। राजनांदगांव जिले के ग्राम बघेरा की नारी शक्ति टसर सिल्क मटका स्पिनर स्व-सहायता की 15 महिलाओं ने जनवरी 2023 से रेशम धागाकरण का कार्य प्रारंभ किया। ये महिलाएं पहले खेती किसानी, मजदूरी और घर का काम करती थी। परिवार के साथ रहकर सीमित साधनों के साथ अपने जीवन का निर्वहन कर रही थी। समूह की महिलाओं द्वारा 4 लाख 50 हजार रुपए का रेशम धागा का उत्पादन किया गया, जिसमें इन महिलाओं को 1 लाख 40 हजार रुपए का शुद्ध लाभ हुआ।
इसी तरह रीपा योजनान्तर्गत बस्तर जिले के ग्राम तुमेनार के रेशम धागा समिति की 20 महिलाओं रेशम धागाकरण का कार्य कर रही है। समूह की महिलाओं द्वारा कुल 6 लाख रुपए का धागा उत्पादन किया गया, जिसमें इन महिलाओं को 1 लाख 80 हजार रुपए का शुद्ध लाभ हुआ।
रीपा केंद्रों के माध्यम से महिलाओं को रेशम धागे का उत्पादन और विपणन करने में सक्षम बनाना है। इसके अलावा, उद्यम गरीबी को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी रोजगार के सृजन की सुविधा प्रदान करना है और ग्रामीण आबादी विशेष रूप से महिलाओं को स्व-रोजगार के ढेर सारे अवसरों के माध्यम से सशक्त बनाना है।
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