काम का दबाव, अधूरी नींद और एकल परिवार यानी अल्जाइमर…!

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अगर आप एक साथ कई काम करते हैं, रात में नींद पूरी नहीं होती और परिवार भी एकल है तो अलर्ट होने की जरूरत है। इन हालात में रहने वालों के बीच अल्जाइमर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। इसकी चपेट में 50 साल की उम्र तक के लोग भी आ रहे हैं। जबकि एक दशक पहले अल्जाइमर होने की औसत उम्र 80 साल थी।

इसका खुलासा अल्जाइमर्स एंड रिलेटड डिस्ऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया, दिल्ली चैप्टर के एक अध्ययन में हुआ है। एम्स (नई दिल्ली) में न्यूरो विभाग की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी बताती हैं कि एक साथ कई काम करने, पूरी नींद न लेने, एकल परिवार के कारण सहित कई कारणों से अल्जाइमर की समस्या बढ़ रही है। 

असल में इन सबसे लोगों की एकाग्रता में तेजी से गिरावट आती है। लोग सुन व देख तो बहुत कुछ रहे होते हैं, लेकिन सारी चीजें दिमाग में दर्ज नहीं हो पातीं। लंबे वक्त तक इसी तरह की जीवनशैली आखिर में इंसान को अल्जाइमर का रोगी बना देती है। 

मेट्रो लाइफ में अब यह बड़ी समस्या बनती जा रही है। कामकाजी आबादी के शहरों की तरफ पलायन होने से अकेलापन गांवों में भी बढ़ रहा है। बढ़ती उम्र के साथ बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी भी इसकी चपेट में आ रही है।

खुद दवाई लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें
डॉक्टर मंजरी ने बताया कि यदि अल्जाइमर के लक्षण दिखें तो खुद दवाई लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। कई बार लोगों को नींद में काफी बुरे सपने आते हैं, कुछ लोग घबराकर उठ जाते हैं। इसके साथ ही नींद जल्दी न आए तो दवाई लेने लगते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए बल्कि डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए योग काफी मददगार साबित हो सकता है।

नीति बनाने की जरूरत
सोसाइटी के राष्ट्रीय कार्यकारी निदेशक आर नरेंद्र ने बताया कि साल 2010 में देश में 37 लाख अल्जाइमर के मरीज थे, जो अब बढ़कर 60 लाख के करीब पहुंच गए हैं। इसमें से दो तिहाई मरीज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि साल 2050 तक देश में अल्जाइमर मरीजों की संख्या बढ़कर 1.40 करोड़ होने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार को नीति बनाने की जरूरत है। यदि हर जिले में एक जांच केंद्र भी बना दिया जाता है तो राहत मिल सकती है। शिक्षा का स्तर बेहतर होने के कारण केरल में सबसे ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। यदि जांच का स्तर बढ़ता है तो इससे संक्रमित मरीज जल्द जांच के दायरे में आ जाएंगे।

ये हैं लक्षण

  • फोन उठाना, पैसे गिनना, गाड़ी चलाना आदि भूलना
  • भोजन करना, बटन लगाना भूलना। बोलचाल की भाषा भी प्रभावित होना
  • हकलाना। समय और स्थान बताने  में असमर्थ होना
  • सोचने समझने की शक्ति भी खत्म होना। चीजें रखकर भूल जाना
  • व्यवहार, उग्र हो जाना, गुस्सा करना। लोगों से संपर्क घटना, एकांत रहना

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अगर आप एक साथ कई काम करते हैं, रात में नींद पूरी नहीं होती और परिवार भी एकल है तो अलर्ट होने की जरूरत है। इन हालात में रहने वालों के बीच अल्जाइमर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। इसकी चपेट में 50 साल की उम्र तक के लोग भी आ रहे हैं। जबकि एक दशक पहले अल्जाइमर होने की औसत उम्र 80 साल थी।

इसका खुलासा अल्जाइमर्स एंड रिलेटड डिस्ऑर्डर सोसाइटी ऑफ इंडिया, दिल्ली चैप्टर के एक अध्ययन में हुआ है। एम्स (नई दिल्ली) में न्यूरो विभाग की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मंजरी त्रिपाठी बताती हैं कि एक साथ कई काम करने, पूरी नींद न लेने, एकल परिवार के कारण सहित कई कारणों से अल्जाइमर की समस्या बढ़ रही है। 

असल में इन सबसे लोगों की एकाग्रता में तेजी से गिरावट आती है। लोग सुन व देख तो बहुत कुछ रहे होते हैं, लेकिन सारी चीजें दिमाग में दर्ज नहीं हो पातीं। लंबे वक्त तक इसी तरह की जीवनशैली आखिर में इंसान को अल्जाइमर का रोगी बना देती है। 

मेट्रो लाइफ में अब यह बड़ी समस्या बनती जा रही है। कामकाजी आबादी के शहरों की तरफ पलायन होने से अकेलापन गांवों में भी बढ़ रहा है। बढ़ती उम्र के साथ बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी भी इसकी चपेट में आ रही है।

खुद दवाई लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें

डॉक्टर मंजरी ने बताया कि यदि अल्जाइमर के लक्षण दिखें तो खुद दवाई लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। कई बार लोगों को नींद में काफी बुरे सपने आते हैं, कुछ लोग घबराकर उठ जाते हैं। इसके साथ ही नींद जल्दी न आए तो दवाई लेने लगते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए बल्कि डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए योग काफी मददगार साबित हो सकता है।

नीति बनाने की जरूरत

सोसाइटी के राष्ट्रीय कार्यकारी निदेशक आर नरेंद्र ने बताया कि साल 2010 में देश में 37 लाख अल्जाइमर के मरीज थे, जो अब बढ़कर 60 लाख के करीब पहुंच गए हैं। इसमें से दो तिहाई मरीज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि साल 2050 तक देश में अल्जाइमर मरीजों की संख्या बढ़कर 1.40 करोड़ होने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार को नीति बनाने की जरूरत है। यदि हर जिले में एक जांच केंद्र भी बना दिया जाता है तो राहत मिल सकती है। शिक्षा का स्तर बेहतर होने के कारण केरल में सबसे ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। यदि जांच का स्तर बढ़ता है तो इससे संक्रमित मरीज जल्द जांच के दायरे में आ जाएंगे।

ये हैं लक्षण

  • फोन उठाना, पैसे गिनना, गाड़ी चलाना आदि भूलना
  • भोजन करना, बटन लगाना भूलना। बोलचाल की भाषा भी प्रभावित होना
  • हकलाना। समय और स्थान बताने  में असमर्थ होना
  • सोचने समझने की शक्ति भी खत्म होना। चीजें रखकर भूल जाना
  • व्यवहार, उग्र हो जाना, गुस्सा करना। लोगों से संपर्क घटना, एकांत रहना

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