kurud में धूमधाम से मना देवउठनी एकादशी का पर्व

कुरूद @ मुकेश कश्यप। नगर सहित ग्रामीण अंचल में गुरुवार को देवउठनी एकादशी का महापर्व धूमधाम से मनाया गया। सुबह से बाजार में पर्व को लेकर चहल-पहल रही।बाजार में गन्ना खूब बिका , वहीं पूजन सामग्री ,फल और फटाखे दुकान भी गुलजार रहे। घरों के आंगन में मनमोहक रंगोली से वातावरण में पर्व की खुशियां बिखरती रही इसी तरह शाम होते ही लोगों ने तुलसी माता और भगवान सालिग राम की पूजा करते हुए गन्ने का मंडप सजाकर विवाह की रस्म को विधिविधान पूर्वक पूरा किया। इसके साथ ही जगमग दिए की रोशनी में खूब फटाखे फोड़े गए और एक-दूसरे को पर्व की बधाई देते हुए इस त्यौहार में चार चांद लगाया गया।
मान्यताओं के अनुसार हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना है।इस एकादशी के बाद से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु पांच माह की योग निद्रा से जागेंगे और इसी के साथ मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत हो जाएगी। श्री हरि को तुलसी प्राण प्रिय है इसलिए जागरण के बाद सर्वप्रथम तुलसी के साथ उनके विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रत और पूजा के अलावा भी कुछ उपाय करने से आपके ऊपर श्री भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।तुलसी देवी लक्ष्मी का ही दूसरा रूप है। कार्तिक माह में तुलसी पूजा और खासकर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। यदि आपने पूरे महीने तुलसी की सेवा नहीं की है, तो एकादशी से पूर्णिमा तक घी का दीपक जलाकर मां तुलसी को प्रसन्न करना चाहिए। ऐसा करने घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और उससे स्नान करें। साथ ही इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु का प्रिय माना गया है। ऐसा करने से आपके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। जिस स्थान पर शालिग्राम और तुलसी होते हैं, वहां भगवान श्री हरि विराजते हैं और वहीं सम्पूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। पदमपुराण के अनुसार जहां शालिग्राम शिलारूपी भगवान केशव विराजमान हैं, वहां सम्पूर्ण देवता,असुर, यक्ष और चौदह भुवन मौजूद हैं। जो शालिग्राम शिला के जल से अपना अभिषेक करता है,उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्न्नान के बराबर और समस्त यज्ञों को करने समान ही फल प्राप्त होता है।

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