प्रदेशवासियों को औषधीय पौधों की खेती से जोड़े: विकास मरकाम

रायपुर। छत्तीसगढ़ में खुशबूदार खस (वेटिवर) की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इस उद्देश्य से छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा आज बोर्ड कार्यालय के सभाकक्ष में ‘वेटिवर फॉर्मिंग टेक्नालॉजी’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता बोर्ड के अध्यक्ष विकास मरकाम ने की।

बोर्ड के अध्यक्ष विकास मरकाम ने कार्यशाला के शुभारंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रदेशवासियों को औषधीय पौधों के सरंक्षण, संवर्धन एवं कृषिकरण से जोड़ते हुए उन्हें आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाने के प्रयास किए जाएं। आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड की कृषिकरण परियोजनाओं का अधिक से अधिक लाभ छत्तीसगढ़वासियों को दिलाया जाए। साथ ही औषधीय पौधों की खेती करने वाले एवं औषधीय पौधों के संग्रहण करने वाले लोगों को इसके खरीदे जाने वाले मूल्य की जानकारी भी दी जाए।

कार्यशाला में बताया गया कि औषधीय गुणों वाले खस के तेल का अगरबत्ती, इत्र, साबुन, औषधीय निर्माण, सौन्दर्य प्रसाधन और एरोमा उद्योगों में किया जाता है। साथ ही लघु उद्योग और घरों में इसकी जड़ों का उपयोग चटाईयॉं बनाने में, चारे के रूप में व पलवार के रूप में छप्पर निर्माण में किया जाता है। वेटिवर घास से टोकरियॉं, पाउच, खिड़की के आवरण, दीवार पर लटकने वाली वस्तुएं बनाने और छप्पर की छतों में आमतौर किया जाता है। औषधि उपयोग में यह तंत्रिका और रक्त संचार संबंधी समस्याओं तथा पेट दर्द की लिए उपयोगी होता है। इसके व्यापक उपयोग के कारण इसकी खेती करने वाले किसानों को बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है। एक लीटर वेटिवर तेल का मूल्य वर्तमान में 15 हजार रूपए से 20 हजार रूपए प्रति लीटर है।

बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जे.ए.सी.एस.राव ने कार्यशाला में बताया कि वेटिवर रोपण से स्थानीय किसान व ग्रामीण क्षेत्रों के समुदायों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा, क्योंकि इनका रोपण अत्यधिक सरल होने के साथ-साथ इनके जड़ों से प्राप्त होने वाले तेल की बाजार में अच्छी मांग है। इसका मूल्य भी अधिक मिलता है। खस का पौधा अत्यधिक सहनशील होने के कारण कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उग सकता है। इसे सिंचित व असिंचित क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। इसमें सिंथेटिक मोलिक्यूल नहीं होते इसी कारण इसके तेल का उपयोग प्राकृतिक रूप से ही किया जाता है तथा इसलिए इसका कृषिकरण किया जाना आवश्यक है।

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