Nagri : ऐसी देवी मंदिर जहां अपने आप प्रज्जवलित होती है ज्योति,आखिर महिलाएं क्यों नहीं जाती इस माता के दरबार में, पढ़िए

प्रदीप साहू ® नगरी | धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं के देश भारत में हजारों कहानियों के साथ लाखों मान्यताएं हैं. करोड़ों मंदिर हैं, लाखों धार्मिक स्थल हैं. इन जगहों पर कहीं पुरुषों का जाना मना है, तो कहीं महिलाओं का. छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के बीहड़ में एक देवी मंदिर है, लेकिन इस मंदिर में महिलाओं का जाना ही वर्जित है. इसके पिछे एक विशेष मान्यता है….

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के मगरलोड ब्लाक के अंतिम छोर बसे ग्राम मोहेरा में निरई माता का मंदिर दुर्गम पहाड़ियों में स्थित है। यह मंदिर साल में केवल एक बार चैत्र नवरात्रि में पड़ने वाले प्रथम रविवार के दिन कुछ घण्टो के लिये खुलता है…. यहा पर माता की कोई मूर्ति विराजमान नही है बल्कि माता निराकार रूप में पत्थर की गुफा में विराजित है। मान्यता है कि माताजी में भेंट चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है। तो वही कई लोग मन्नत पूरी होने पर अपनी भेंट प्रसाद चढ़ाते है। स्थानीय लोगों ने बताया कि जिस दिन माता का दरबार खुलता है उस दिन को माता जात्रा के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन मन्नत पूरा होने पर लोग अपनी मन्नत के अनुसार भेंट चढ़ाते है…जात्रा के दिन लाखो की संख्या में भक्त दर्शन करने आते है साथ ही मन्नत पूरी होने पर भेंटस्वरूप मन्नत में मांगी गयी वस्तु माता में चढ़ायी जाती है।

महिलाओ का प्रवेश निषेध,महिलाएं नही खा सकती यहाँ का प्रसाद
मगरलोड ब्लाक से लगभग 35 किमी दूर दुर्गम पहाड़ी पर स्थित माता निरई का मंदिर अंचल के देवी भक्तों की आस्था का केंद्र है।खास बात यह है कि इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश और उनका पूजा-पाठ करना करना निषेध है।पूजा की सारी रस्मे केवल पुरूष वर्ग के लोग ही निभाते है।महिलाओं को यहा का प्रसाद ग्रहण करना भी वर्जित है।कहा जाता है कि यदि कोई महिला जान बूझकर प्रसाद ले ले तो कुछ ना कुछ अनहोनी जरूर हो जाती है…..

इस एक दिन में दी जाती है हजारों बकरों की बलि
क्षेत्र के प्रसिद्ध मां निराई माता मंदिर ग्राम मोहेरा में प्रति वर्ष चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को जात्रा कार्यक्रम में श्रद्धालु जुटते है। वर्ष में एक दिन ही माता निरई के दरवाजे आम लोगों के लिए खोले जाते हैं। बाकी दिनों में यहां आना प्रतिबंधित होता है। इस दिन यहां हजारों बकरों की बलि दी जाती है। मान्यता है बलि चढ़ाने से देवी मां प्रसन्न होकर सभी मनोकामना पूरी करती हैं, वहीं कई लोग मन्नत पूरी होने के बाद भेंट के रूप में जानवरों की बलि देते हैं। यहां जानवरों में विशेषकर बकरे की बलि की प्रथा आज भी जारी है…

अन्य मंदिरों की तुलना में यहाँ की एक और विशेष बात यह है कि जहा पूरे प्रदेश के अन्य मंदिर दिन भर खुले रहते है तो वही निरई माता का मंदिर सुबह 4 बजे लेकर 12 बजे तक यानि केवल 8 घण्टे ही माता के दर्शन के लिये खुला रहता है, निरई माता मंदिर के समीप लगे ग्राम मोहेरा के लोगो ने बताया कि जैसे ही नवरात्रि लगता है चाहे वह शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र उस दरम्यान पहाड़ी के ऊपर मंदिर में अपने आप ज्योत प्रज्वलित हो जाती है जो कि उनके गांव से ही शाम के समय किस्मत वालो को ही दिखाई देती है…जो व्यक्ति भाग्यशाली होता है उसे ही यह ज्योति कलश के दर्शन होते है |

Leave a Comment

Notifications