
रायपुर…. संस्कृत भारती संस्कृत को जन्मदिन की भाषा बनाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहती है। संस्कृत के प्रचार प्रसार के क्रम में रायपुर के महादेव घाट हाटकेश्वर मंदिर परिसर में संस्कृत भारती द्वारा श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर संस्कृत दिवस का आयोजन किया गया।
श्रावणी पूर्णिमा पर रक्षाबंधन के दिन ही संस्कृत दिवस मनाया जाता है। सन् 1969 में भारत सरकार ने संस्कृत के अनादि और अविच्छिन्न प्रवाह को सम्मान देने के लिए आरंभ किया था। संस्कृत दिवस कोई साधारण दिन नहीं, अपितु यह उस कालजयी साहित्य परंपरा का पर्व है, जिसने सहस्राब्दियों से सारी मानवता को संस्कारित किया है।
संपूर्ण विश्व में श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस का आयोजन किया जाता है। भारत में संस्कृत दिवस के तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक के समय को संस्कृत सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर शोभा यात्रा सुभाषित-सूक्ति प्रतियोगिता, गीत प्रतियोगिता, वस्तु प्रदर्शनी, रंगोली, चित्र प्रतियोगिता, नाटक मंचन, साहित्यिक संगोष्ठी, वाद-विवाद जैसे कार्यक्रमों का आयोजन विद्यालय-महाविद्यालय, ग्राम-नगर, महानगर आदि में संपन्न होता है। इसी क्रम में रक्षाबंधन अर्थात संस्कृत दिवस के अवसर पर संस्कृत भारती रायपुर महानगर इकाई के द्वारा रायपुर के खारु नदी के तट पर महादेव घाट के हाटकेश्वर मंदिर परिसर में संस्कृत दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महानगर रायपुर के अध्यक्ष डॉ. लूनेश कुमार वर्मा, डॉ. व्यास नारायण आर्य, डॉ. बहुरन सिंह पटेल, राजेश राजपूत, खुमेंद्र साहू, टीकाराम, अशोक, हेमंत साहू सहित अनेक कार्यकर्ता उपस्थित हुए।
डॉ. व्यास नारायण आर्य ने संस्कृत साहित्य की विपुलता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रामायण महाभारत गीता पुराण आदि की रचना संस्कृत में ही हुई है। संस्कृत में ज्ञान विज्ञान की समस्त बातें निहित हैं। आज वैश्विक स्तर पर संस्कृत की स्वीकार्यता बढ़ी है। नासा के वैज्ञानिकों ने भी संस्कृत की महत्व को स्वीकार किया है। इसलिए संस्कृत का वैश्विक स्तर पर प्रसार प्रसार बढ़ रहा है।
डॉ. बहुरन सिंह पटेल ने संस्कृत भाषा में रचित ग्रंथों के महत्व से अवगत कराते हुए कहा कि- भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा। संस्कृति के प्रसार का माध्यम भाषा है। संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति की विशेषताओं से मानवता का प्रयास हो सकता है, लोग श्रेष्ठ नागरिक बन सकते हैं। इसलिए संस्कृत का प्रसार आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत आवश्यक है।
कार्यक्रम में संस्कृत भारती महानगर अध्यक्ष डॉ. लूनेश कुमार वर्मा ने बताया कि भारत में बहुत सी भाषाएं हैं। उन भाषाओं में विभिन्न आधार पर समय- समय मतभेद उभर कर सामने आते हैं और विरोध और विद्रोह की स्थिति निर्मित हो जाती है। संस्कृत ऐसी भाषा है, जिसका संपूर्ण भारत में कहीं भी विरोध नहीं है। भारतीय संस्कृति की विशेषता अनेकता में एकता की भावना संस्कृत के परिपेक्ष्य में शत-प्रतिशत खरा है। भारत के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण किसी भी दिशा के किसी भी प्रदेश में कहीं भी संस्कृत का विरोध नहीं है। संस्कृत सर्व स्वीकार्य भाषा है। सभी भाषाएं संस्कृत से अनुप्राणित हैं। भारत की विभिन्न भाषाओं में संस्कृतं शब्दावलियों का समावेश इस बात का साक्षात प्रमाण है। कुछ लोग कहते हैं संस्कृत भारत के प्राचीन भाषा है किंतु यह पूर्ण सत्य नहीं है। संस्कृत न केवल प्राचीन भाषा है अपितु आधुनिक भाषा भी है। आज भी संस्कृत का व्यवहार हो रहा है। आज हम सब यहां संस्कृत बोलने वाले लोग उपस्थित हैं। पूरा कार्यक्रम संस्कृत में ही संपन्न हो रहा है। मध्यकाल में कुछ कारणों के कारण संस्कृत का व्यवहार जन सामान्य से दूर होता गया। आज लोग यदि संस्कृत बोलने में अपने को असमर्थ पाते हैं, तो दोष उनका नहीं है। वास्तव में संस्कृत सरल है। आज जब यहां संस्कृत भारती रायपुर इकाई द्वारा किया जा रहा संपूर्ण कार्यक्रम संस्कृत में ही संपन्न हो रहा है और मंदिर परिसर में जो लोग मंदिर दर्शन के लिए आ रहे हैं बड़े ध्यान से कार्यक्रम को सुन रहे हैं और समझ रहे हैं। यदि थोड़ा सा प्रयास और अभ्यास किया जाए तो निश्चित रूप से सभी लोग संस्कृत को बोलने में भी समर्थ हो जाएंगे। संस्कृत भारती इसी के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। संस्कृत भारती संस्कृत को सामान्य बोल-चाल और व्यवहार की भाषा बनाने की दिशा में अग्रसर है। संस्कृत भारती की प्रयासों के कारण ही आज न केवल शिक्षा से क्षेत्र में काम करने वाले लोग अभी तो व्यापारी चिकित्सा पंचक चालक वैद्य आदि भी व्यवहार करने लगे हैं। न केवल पुरुष अभी तो महिला भी न केवल बालक अभी तो बालिका भी आज बेझिझक संस्कृत का व्यवहार करने लगे हैं।
राजेश सिंह राजपूत, हेमंत साहू ने संस्कृत मात्र भाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और चिरंतन मूल्यों की वाहिका है। इसने सहस्रों वर्षों में ऐसा तलस्पर्शी एवं विशाल साहित्य रचा है, जिसका कोई समतुल्य नहीं है। जीवन का कोई भी अंश ऐसा नहीं है, जिस पर संस्कृत में कुछ लिखा न गया हो। कार्यक्रम में विभिन्न कार्यकर्ताओं ने संस्कृत में ही अपने विचार रखे। यहां संस्कृत में सामूहिक गीत भी प्रस्तुत किया गया, जिसे नगरे सुनकर आनंदित हो गए। संपूर्ण मंदिर परिसर संस्कृत भारती के इस कार्यक्रम से संस्कृतमय बन गया।